ओं वसंत
तुम तब आए
जब पलाश दहके
बहने लगी प्रीत रस धारा
मन विहंग चहके
सुधियों के बंद वातायन
खोल रही मलयानल
चन्दन वन में अनामंत्रित
खुशबू की महफ़िल
आदिबाला संग नर्तक
बिन पिए बहके
भ्रमर नाचे
भ्रमरी नाची
मन में रही पिपासा
कोयल मोर पपीहे झूमे
हर छठ भर चौमासा
पिया रंग रंगी प्रेयसी
सधे कदम लहके
माहूट दे बंजारे बादरा
kaare kos chale
bhingi sangam ki chadarya
aaman bore khile
आँचल फगुनिया गंध भरी
मह्युआ रुत महके
० कैलाश आदमी
Saturday, May 22, 2010
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