Saturday, May 22, 2010

जब पलाश दहके

ओं वसंत
तुम तब आए
जब पलाश दहके
बहने लगी प्रीत रस धारा
मन विहंग चहके
सुधियों के बंद वातायन
खोल रही मलयानल
चन्दन वन में अनामंत्रित
खुशबू की महफ़िल
आदिबाला संग नर्तक
बिन पिए बहके
भ्रमर नाचे
भ्रमरी नाची
मन में रही पिपासा
कोयल मोर पपीहे झूमे
हर छठ भर चौमासा
पिया रंग रंगी प्रेयसी
सधे कदम लहके
माहूट दे बंजारे बादरा
kaare kos chale
bhingi sangam ki chadarya
aaman bore khile
आँचल फगुनिया गंध भरी
मह्युआ रुत महके
० कैलाश आदमी